Sunday, October 2, 2011

सर्गोन बोउलुस : युद्ध की सन्तान

आज सर्गोन बोउलुस की एक और कविता...













युद्ध की सन्तान : सर्गोन बोउलुस
(अनुवाद : मनोज पटेल)

(एक इराकी बच्ची के लिए जो युद्ध के दौरान पैदा हुई 
और मर गई)

वह बच्ची आई 
जो लापता हो गई थी युद्ध में 
गलियारे के आखिरी सिरे पर खड़ी थी वह 
एक मोमबत्ती लिए हुए 
वह मुझे दिखती है  
हर सुबह जागते ही 
इंतज़ार करती होती है 
यथार्थ की दीवार से मेरे टकराने का.

समझदारी के आतंक से फैली हुई 
उसकी आँखों में धीरज है, 
पहाड़ी कांटेदार झाड़ियों के बीच 
जहां मेरे ख़याल भटकते हैं रात में 
मेरे हाथ तोड़ सकते हैं उसकी बेड़ियाँ 
मेरी आवाज़ खड़े कर सकती है सवाल, 
हत्यारे या फिर खुदा के प्रति, 
सवाल जिनके जवाब उस बच्ची को मालूम हैं...

कितने दिनों से चल रहा है यह युद्ध, बेटी ?
कितनी रातें बीत चुकी हैं, किस कुँए के तल पर ?
दुख का कितना अनंतकाल, कितनी दिशाओं से ?
चार सितारा जनरल ने क्या किया होता अगर उन्होंने 
उसकी बच्ची को एक भी दिन दूध से वंचित रखा होता ?

बच्ची कहती है :
वे एक जहाज पर लेते गए मेरे परिवार को 
दूसरी दुनिया की तरफ 
मुझे पता था कि वे मुझे छोड़ जाएंगे 
अकेला, इस तट पर 
मुझे पता था...
                    :: :: :: 
Manoj Patel Translations, Manoj Patel Blog 

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