Saturday, October 8, 2011

मरम अल-मसरी : सीखो प्यार करना

मरम अल-मसरी की तीन कविताएँ...


















मरम अल-मसरी की तीन कविताएँ 
(अनुवाद : मनोज पटेल)

मैं बंद कर लूंगी अपनी आँखें, 
रखवाली नहीं करूंगी 
तुम्हारे मंदिर की.

इस बार 
मैं भाग जाने दूंगी 
नटखट भगवान को 
नंगे पाँव.
:: :: ::

मुझे आजादी बख्शो 
और धीरज रखो 
मेरे इन्कार करने पर.
तब आओ मेरे नजदीक 
जब बुलाऊँ मैं तुम्हें,
और जब मैं उपेक्षा करूँ तुम्हारी 
सीखो इंतज़ार करना.
कामना करो मेरी 
अपने सिवा किसी और के लिए 
और सीखो प्यार करना. 
:: :: ::

मर जाएगा सांप 
जब 
वह काटेगा मुझे 
और चखेगा 
मेरा दुख.
:: :: ::
Manoj Patel Translations, Manoj Patel's  Blog 

3 comments:

  1. वाह ! मंदिर की रखवाली करने पड़े वह मंदिर ही कहाँ रहा? सुंदर कवितायें!

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  2. मर जायेगा सांप
    जब
    वह काटेगा मुझे
    और चखेगा
    मेरा दुःख !......कमाल,गज़ब !

    अल-मसरी की धमाकेदार कविताओं के अनुवाद और प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार ,मनोज जी !

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  3. पहली कविता में ...गजब का प्रहार है

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