Friday, April 27, 2012

अफ़ज़ाल अहमद सैयद : क्या आग सबसे अच्छी खरीदार है

अफ़ज़ाल अहमद सैयद की एक और कविता...  

 
क्या आग सबसे अच्छी खरीदार है : अफ़ज़ाल अहमद सैयद 
(लिप्यंतरण : मनोज पटेल) 

लकड़ी के बने हुए आदमी 
पानी में नहीं डूबते 
और दीवारों से टांगे जा सकते हैं 

शायद उन्हें याद होता है 
कि आरा क्या है 
और दरख़्त किसे कहते हैं 

हर दरख़्त में लकड़ी के आदमी नहीं होते 
जिस तरह हर ज़मीन के टुकड़े में कोई कारआमद चीज़ नहीं होती 

जिस दरख़्त में लकड़ी के आदमी 
या लकड़ी की मेज़ 
या कुर्सी 
या पलंग नहीं होता 
आरा बनाने वाले उसे आग के हाथ बेच देते हैं 

आग सबसे अच्छी खरीदार है 
वह अपना जिस्म मुआवज़े में दे देती है 
मगर 
आग के हाथ गीली लकड़ी नहीं बेचनी चाहिए 
गीली लकड़ी धूप के हाथ बेचनी चाहिए 
चाहे धूप के पास देने को कुछ न हो 
लकड़ी के बने हुए आदमी को 
धूप से मोहब्बत करनी चाहिए 
धूप उसे सीधा खड़ा होना सिखाती है 

मैं जिस आरे से काटा गया 
वह मक्नातीस का था 
उसे लकड़ी के बने हुए आदमी चला रहे थे 
ये आदमी दरख़्त की शाखों से बनाए गए थे 
जबकि मैं दरख़्त के तने से बना 
मैं हर कमज़ोर आग को अपनी तरफ़ खींच सकता था 
मगर एक बार 
एक जहन्नुम मुझसे खिंच गया 

लकड़ी के बने हुए आदमी 
पानी में बहते हुए 
दीवारों पर टंगे हुए 
और कतारों में खड़े हुए अच्छे लगते हैं 
उन्हें किसी आग को अपनी तरफ़ नहीं खींचना चाहिए 

आग 
जो यह भी नहीं पूछती 
कि तुम लकड़ी के आदमी हो 
या मेज़ 
या कुर्सी 
या दियासलाई 
               :: :: :: 

मक्नातीस  :  चुम्बक  

7 comments:

  1. वाह......................

    बेहतरीन!!!

    ReplyDelete
  2. लकड़ी के आदमी जनता हैं जिनके भाग्यविधाता उन्हें जब मर्जी आग में झोंक सकते हैं.

    ReplyDelete
  3. बहुत उम्दा, निशब्द हूँ मैं ...

    मैं जिस आरे से काटा गया
    वह मक्नातीस का था .........

    ReplyDelete
  4. वाह ..गहन भाव संयो‍जन लिए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति।

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...