Sunday, May 6, 2012

जैक एग्यूरो : खुली खिड़कियाँ और बादल

असन विश्व पुरस्कार २०१२ से सम्मानित किए गए प्यूर्टो रिको के कवि जैक एग्यूरो की एक और कविता. उल्लेखनीय है कि अल्जाइमर रोग से पीड़ित होने के कारण वे इस सम्मान को प्राप्त करने के लिए भारत नहीं आ सके और उनकी तरफ से इसे प्राप्त करने के लिए उनके पुत्र मार्सल एग्यूरो एवं पुत्री नतालिया एग्यूरो तिरूवनंतपुरम आए हुए हैं.  

नतालिया एवं मार्सल एग्यूरो, फोटो : द हिन्दू 











खुली खिड़कियों और बादलों के लिए प्रार्थना : जैक एग्यूरो 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

प्रभु, 
मेरे लिए एक जगह बचा रखना स्वर्ग में किसी बादल पर 
इन्डियन, अश्वेत, यहूदी, आयरलैंड और इटली के लोगों के साथ 
पुर्तगाली और तमाम एशियाई, स्पेनी, अरबी लोगों के साथ. 
प्रभु, 
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर 
वे जोर-जोर से बजाते हैं अपने संगीत, 
या खुली छोड़ देते हैं खिड़कियाँ अपनी -- 
मुझे तो पसंद है तरह-तरह के भोजन की खुशबू. 
मगर प्रभु, 
यदि स्वर्ग एकीकृत न हो, 
और नस्लवादी हो कोई फ़रिश्ता, 
जान लीजिए, मैं तो नहीं आने वाला वहां 
क्योंकि प्रभु, 
नरक तो पहले ही देख चुका हूँ मैं.  
                    :: :: :: 

3 comments:

  1. WAAHHH..BAHUT HI ACHHI BAAT..BAHUT HI..

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  2. बहुत खूब ! नस्लवादी दुनियाँ और नरक में कोई भेद नहीं ! आभार इस सुंदर और संदेश-परक कविता की प्रस्तुति के लिए !

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