Wednesday, May 30, 2012

जैक एग्यूरो की कविता

जैक एग्यूरो की एक और प्रार्थना...   

 
विश्व रेस्तरां के लिए प्रार्थना : जैक एग्यूरो 
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

प्रभु, 
बड़ा अजीबोगरीब मेन्यू है 
विश्व रेस्तरां वाले फ़रिश्ते के पास... 

एक पन्ने पर कोई खाना नहीं, 
एक पन्ने पर आधी खुराक, 
और एक पन्ने पर सिर्फ रासायनिक जहर. 

प्रभु, मैं जानता हूँ कि गंभीर आरोप हैं ये, 
पर अपने मुंह में मुनाफ़ा ठूंसते जाने ने 
बर्बाद कर डाली हैं उसकी स्वाद ग्रंथियां. 

भगवन, रद्द कर दें उसकी 
खाना-खजाना पत्रिका की ग्राहकी. 
               :: :: ::  

8 comments:

  1. बेहद मार्मिक कविता.भूख और पैसे की बेतहाशा बर्बादी को एक ही कविता में समेटने का दुसाध्य प्रयास किया गया है. दुनिया से यह असमानता शायद कभी समाप्त नहीं हो सकती है.

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  2. बेहतरीन..बेहतरीन..बेहतरीन!

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  3. कमाल की अभिव्यक्ति....

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  4. बहुत प्रभावशाली कथ्य..

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  5. बहुत खूब!! बढिया प्रस्तुति।

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  6. सीधे प्रभु से संवाद करती मार्मिक कविता...!

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