Monday, August 12, 2013

ट्विटर कहानियाँ

शान हिल की कुछ और ट्विटर कहानियां...
शान हिल की ट्विटर कहानियाँ  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

दवाईयों ने बिल्कुल काम नहीं किया. अच्छे ख़याल आते ही रहे. उदासी से दूर हो जाने के कारण बतौर एक कलाकार मेरे दिन ख़त्म हो गए. मैं सामान्य लोगों में शामिल हो गया. 
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चीरफाड़ का वह नतीजा नहीं रहा. मैरी में लक्षण तो दिख रहे थे लेकिन उसके भीतर हमें शैतान का कोई भौतिक प्रमाण नहीं मिल पाया. 
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मनश्चिकित्सा तब तक ठीक काम करती दिख रही थी जब तक मुझे यह एहसास नहीं हो गया कि मैं डाक्टर नहीं मरीज हूँ. और भी बुरा तो तब हुआ जब मुझे समझ आया कि मैं तो महज कुर्सी ही था. 
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मार्टिन ने ट्विटर पर एक शब्द लिखने में कुछ गलती कर दी. व्याकरण के गिद्धों ने उसे घेर लिया और अपने टूटे हुए दिल से ध्यान हटाने के लिए वह भी भिड़ा रहा. 
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ट्रक पलट गया और उसमें आग लग गई. मैं किसी तरह निकला और उस पर लदी चोरी की पेस्ट्रियों को जलता हुआ देखता रहा. अब मैं तुमसे अपना प्यार कैसे साबित कर पाऊँगा? 
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Thursday, August 8, 2013

दूरी

नत्त रोज़न्स्का की एक कविता... 

नत्त रोज़न्स्का की कविता  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

तुम 
हाथ भर की दूरी पर हो मुझसे 
बस मेरा हाथ 
अपनी रजाई की तहों के भीतर नहीं 
दुनिया के एक नक़्शे पर पड़ा है 
और मुमकिन नहीं मेरे लिए  
कि समंदर लपेटकर अपने चारों ओर 
दुबक जाऊँ तुम में 
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Tuesday, August 6, 2013

पाब्लो नेरुदा : कुछ सवाल

पाब्लो नेरुदा की 'सवालों की किताब' से कुछ और सवाल... 

कुछ सवाल : पाब्लो नेरुदा   
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

इत्ते बड़े-बड़े हवाई जहाज 
क्यों नहीं उड़ा करते अपने बच्चों के साथ? 

कौन सी पीली चिड़िया 
नींबुओं से भर लेती है अपना नीड़? 

हेलीकाप्टरों को वे सिखाते क्यों नहीं  
शहद चूस लेना धूप से? 

आज रात कहाँ छोड़ दिया है 
पूनम के चाँद ने आटे का अपना बोरा? 
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Saturday, August 3, 2013

एक लघुकथा

आज एक और लघुकथा... 

बुरी कल्पना : रॉड ड्रेक  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

उसने बताया कि उसके पति नहीं रहे थे. वह इससे कुछ ख़ास परेशान नहीं लग रही थी. शायद वे लंबे समय से बीमार रहे हों और यह इतना अनपेक्षित न रहा हो. कह लीजिए कि एक तरह की राहत की बात ही हो. या शायद वह असल में उनसे प्यार न करती रही हो, या अब उनसे प्यार न रह गया हो और उसे इस बात की बहुत परवाह न हो कि वे जा चुके हैं. या क्या पता... उसने उन्हें मार ही डाला हो. उसे किसी दुर्घटना का रूप दे दिया हो जैसा कि लोग अक्सर करते रहते हैं, और पुलिस भी इस तरह की आम, साधारण मौत की जांच-पड़ताल नहीं करती. यह पहले पन्ने की खबर नहीं बनी थी (वे ख्यात या कुख्यात नहीं, एक मामूली इंसान थे), विरासत में भारी धन-दौलत छोड़ के नहीं गए थे और मौत भी रक्त-रंजित या किसी तरह की ज्यादती से नहीं हुई थी. जाहिर तौर पर वह सामान्य ढंग से गुजर जाना भर था जिसमें कोई गहरा राज छिपा हो सकता था.  
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Thursday, August 1, 2013

ज़ाक प्रेवेर की कविता

ज़ाक प्रेवेर की एक और कविता... 

तुम्हारे लिए मेरी जान : ज़ाक प्रेवेर  
(अनुवाद : मनोज पटेल) 

मैं पंछियों की मंडी गया 
और मैंने पंछी खरीदे 
तुम्हारे लिए 
मेरी जान 
मैं फूलों की मंडी गया 
और मैंने फूल खरीदे 
तुम्हारे लिए 
मेरी जान 
मैं लोहे की मंडी गया 
और मैंने बेड़ियाँ खरीदीं 
भारी बेड़ियाँ 
तुम्हारे लिए 
मेरी जान 
फिर मैं गुलामों की मंडी गया 
और मैंने तलाशा तुम्हें 
मगर तुम मिलीं नहीं मुझे 
मेरी जान. 
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ज़ाक प्रेवेर की एक बहुत अच्छी कविता पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें. 
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